RSS चीफ मोहन भागवत ने गोरखपुर में फहराया तिरंगा, बोले- भगवा रंग त्याग का प्रतिक


गोरखपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर संघचालक मोहन भागवत ने गोरखपुर के सूरजकुंड में गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया. राष्ट्र गान के बाद भारत माता के चित्र पर पुष्पांजलि की. इस मौके पर आरएसएस प्रमुख (RSS Chief) मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा कि ये हमारा 71वां गणराज्य दिवस मना रहे हैं. 15 अगस्त 1947 को हम स्वतंत्र हुए और स्वतंत्र देश को स्वा-तंत्र से चलना चाहिए उसके पहले हम लोग गुलाम थे. अंग्रेज राज कर रहे थे, हम संघर्ष कर रहे थे स्वतंत्रता के लिए. स्वतंत्र होने तक उनका ही तंत्र चल रहा था.

संघ प्रमुख ने कहा कि स्वतंत्र होने के बाद हमारे द्वारा चयन किये गये हमारे तपस्वीयों ने विचार किया कि स्वतंत्र भारत को अपने स्व के अनुसार तंत्र देना चाहिए. भारत चलेगा तो भारत के अनुसार चलना चाहिए. मोहन भागवत ने कहा कि यह हमारे तीन रंग का ध्वज है. केसरिया भगवा रंग है. हमारे देश में सर्वमान्य रंग है. भगवा पहने कोई आता है तो हम सहज ही झुक जाते हैं प्रणाम करते हैं क्योंकि ये भगवा रंग एक तरफ तो ज्ञान का प्रतीक है प्रकाश का प्रतीक है.

सूर्योदय के समय आकाश का रंग जैसा हो जाता है ऐसा ये रंग है, हमारा भारत देश है वो तेज की उपासना करने वाला ज्ञान की उपासना करने वाला ज्ञान विज्ञान युक्त सकारात्मक चिंतन करने वाला देश है. भा मतलब तेज यानि कि जो तेज में रत रहता है वो भारत है. हमको जो भारत खड़ा करना है वो ज्ञान विज्ञान में संपन्न, मुनष्य जीवन को निरंतर उन्नत करने वाला भारत हमें खड़ा करना है. इसलिए सबसे उसे रखा गया, भगवा रंग त्याग का रंग है, स्वार्थ के लिए नहीं जीना. भारत ने कभी अपना स्वार्थ देखकर जीवन नहीं जीया.

दुनिया भर के देशों के लोग अच्छा जीवन, सफल जीवन जीने का तरीका सीखे ऐसा हमारा जीवन हमे खड़ा करने के लिए हम जीते हैं, भारत बड़ा होता है तो सारी दुनिया को बड़ा करता है, सारी मानवता में सुख शांति लाता है और ऐसा करने के लिए भारत के लोग त्यागमय जीवन जीते हैं. भारत का स्वभाव है त्याग की आराधना और भारत के नागरिकों का कर्तव्य है दुसरों का भला करना. दूसरा रंग है सफेद रंग वो शुद्धता का प्रतीक है, ज्ञानी तो रावण भी था परन्तु मन मैला था, मन में कामवासना थी. मन में अंहकार था.


 


ज्ञान के उपयोग की दिशा देनी पड़ी है. नहीं तो लोग विद्या का उपयोग लोग विवाद के लिए करते हैं. धनवान होकर मत चढ़ जाता है, और बलवान लोग अत्याचार करते हैं. लेकिन जिसके इन सब गुणो को अच्छाई की दिशा मिलती है वो न्याय दान के लिए करता है धन का उपयोग सेवा परोपकार के लिए करता है और बल का उपयोग दुर्बलों की रक्षा के लिए करता है भक्ति का एक भाग है प्रेम. सब लोग अपने हैं, हमारे यहां सदियों से कहा जा रहा है. वसुधैव कुंटुबकम. सब लोग अपने हैं. नाना जी देशमुख से पूछा गया कि बताओं अपने क्या क्या किया तो उन्होंने कहा कि हम क्या बतायें हमने को कभी अपने लिया जिया ही नहीं.

हम अपनों के लिए जीते हैं और अपने वो हैं जो अभाव में हैं पीड़ा में हैं जो दरीदरी में है. उनकी पीड़ा को दूर करने के लिए हमरा जीवन है. ऐसा आत्मीय रखना भक्ति का एक अंग है और दूसरा अंग है कि उनके लिए सब कुछ समर्पण करना. हमको भी देना है सबकुछ देना है पर देने की इच्छा बरकार रहे. तिरंगे का तीसरा रंग हरा रंग है, हरा रंग लक्ष्मी जी का प्रतीक है समृद्धि का प्रतीक है. समृद्धि के लिए मेहनत करनी पड़ती है. हम अपने देश को वैभव संपन्न बनायेंगे, हमारा देश त्यागी लोगों का देश है ज्ञान की उपसना करने वाले लोगों का देश है.

परन्तु इसका मतलब हम दरिद्र रहेंगे इसका मतलब ये नहीं है, हम अपने देश को समृद्धि देश बनायेंगे ऐसा समृद्धि देश जो अंहकार लेकर नहीं घुमता है बल्कि दुनिया को अच्छा बनाने के लिए करता है, खेत में किसान परिश्रम करता है तो सब हरा भरा होता है और सतत कर्मशीलता का कर्तव्य का संदेश देने वाला ये तीसरा रंग है, ज्ञान, कर्म और भक्ति ये कर्तव्य बताने ध्वज है. और उसके बीचो बीच धर्म चक्र है. धर्म अपना शब्द है. भारतीय भाषाओं में धर्म है लोग गलती से धर्म को पूजा से जोड़ते हैं. वो धर्म है जो सबको जोड़ता है सबको उन्नत रखता है, सबको एक रखता है बिखरने नहीं देता है. इस देश के राजा हम सब हैं. राजा का अधिकार रहता है लेकिन राजा का कर्तव्य रहता है. हम सबको कर्तव्य का पालन करना पड़ेगा​.